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Tuesday, January 9, 2018

विधान - हरिगीतिका छन्द

*हरिगीतिका छन्द*


तँय  रुख लगा (हरिगीतिका)

झन हाँस जी, झन नाच जी , कुछु बाँचही, बन काट के ?
कल के  जरा  तयँ  सोच ले , इतरा नहीं  नद पाट के  
बदरा  नहीं  बिजुरी  नहीं , पहिली  सहीं  बरखा  नहीं
रितु  बाँझ  होवत  जात हे , अब खेत मन बंजर सहीं

झन  पाप  पुन  अउ  धरम ला, बिसरा कभू बेपार मा 
भगवान  के  सिरजाय  जल, झन  बेंच हाट-बजार मा 
तँय  रुख लगा  कुछु पुन कमा,  रद्दा  बना भवपार के 
अपने - अपन   उद्धार  होही   ये   जगत - संसार के        

*हरिगीतिका के विधान*

डाँड़ (पद) - ४, ,चरन - ८ 

तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ मा. आख़िरी मा रगन माने बड़कू,नान्हें,बड़कू (२,१,२)

हर डाँड़ मा कुल मातरा – २८ , बिसम चरन मा मातरा – १६  , सम चरन मा मातरा- १२  मातरा मा  

यति / बाधा – १६, १२ मातरा मा (या १४,१४ मातरा मा) 

खास- ५,१२ १९, अउ २६ वाँ मातरा नान्हें होय ले गाये मा जियादा गुरतुर लागथे.

बिसम अउ सम चरन मा १४, १४ मातरा घलो हो सकथे

मात्राबाँट -
हरिगीतिका हरिगीतिका, हरिगीतिका
112  1 2    112 12     112 12
हरिगीतिका
 112 12

या
श्रीगीतिका श्रीगीतिका, श्रीगीतिका
 2212       2212        2212

श्रीगीतिका
 2212

*अरुण कुमार निगम*

2 comments:

  1. बहुत सुग्घर गुरुदेव

    विधान ल घलो समझा दे हव त हमर जइसे नवा साधक के उपकार हो जात है

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