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Sunday, October 29, 2017

बरवै छंद - श्री दिलीप कुमार वर्मा

बरवै छंद  - श्री दिलीप कुमार वर्मा

पेड़ लगाव  -

जगा खोज ले सुग्घर,पौधा लान।
राँपा कुदरी सँग मा,गड्ढा खान।

करिया माटी सँग मा,खातू डार।
कीरा झन राहय जी,बने निहार।

रोपव पौधा बीच म,जाली मार।
रोज  बिहानी उठ के,पानी डार।

लइका पालव जइसे,तइसन पाल।
गरमी के मौसम मा,पानी डाल।

होही बड़का पौधा,सिरतो मान।
सेवा जाय न बिरथा,तेला जान।

छइहाँ सुग्घर दीही,संगी मोर।
जेहर पाही लीही,नाम ल तोर।

चिरई चिरगुन आही,नीड़ बनाय।
चींव चींव नरियाही,सुख ला पाय।

फुलही फरही पेंड़ ह,सब ला भाय।
लइका मन चढ़ जाही,फर ला खाय।

तोरो छाती फुलही,पा के मान।
सब ले बड़का पुन ये,पौधा दान।

धरती हर हरियाही,ख़ुशी मनाय।
सब ला सुख दे जाही,तोर लगाय।

तोर लगाये पौधा,रौनक लाय।
फुलय फरय जब ओ हर,नाती खाय।

जाबे जब दुनिया ले,तन ला छोंड़।
सुरता करहि सबझन,फर ला तोड़।

नाम अमर हो जाही.संगी मान ।
पेंड लगइ ला असने,तँय झन जान।

आवव पेंड़ लगाइन,समय निकाल।
धरती ला सुघराइन,श्रम ला डाल।

बिना लगे जी पइसा,नाम कमाव।
थोरिक करलव मिहनत,अमर कहाव।


सफाई -

साफ़ रखव घर कुरिया,लीप बहार।
अँगना परछी बरवट,अउ कोठार।

कचरा झन फेंकव जी,संगी खोर।
बिगड़ जही सँगवारी,तबियत तोर।

गन्दा रहिथे नाली,मच्छर होय।
अइसन होय बिमारी,जिनगी खोय।

पानी हर मइलाथे,करे बिमार।
बाढ़य पेट बिमारी,सब लाचार।

हैजा तक हो जाथे,सुन नादान।
आस पास कचरा ले,सिरतो जान।

माछी पनपय भारी,घर मा जाय।
बइठय ओ जे खाना,मनखे खाय।

कहत हवँव सँगवारी,कहना मान।
मैल बिमारी के जड़,कर पहिचान।

कचरा डारव घुरुवा,सबो निकाल।
गीला सुखा सब ला,अलग सम्हाल।

पानी झन माढ़य जी,डबरा पाट।
नाली साफ़ रखे ले,जीहव ठाट।

शौचालय मा जावव,घर बनवाय।
बाहिर मा झन जावव,मल फइलाय।

मान रखव मनखे के,घर मा जाव।
साफ़ स्वच्छ घर आँगन,आदर पाव।

खुद समझव समझावव,कहना मान।
गाँव शहर सफ्फा तब,देश महान।


रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

Friday, October 27, 2017

कज्जल छंद- श्री मोहन लाल वर्मा

कज्जल छंद- श्री मोहन लाल वर्मा

कहाँ बिलमगे धनी मोर।
हिरदे मा रस मया घोर।
सुन्ना लागय गली खोर।
पूछत रहिथँव पता सोर।1।

सास ननद नइ गोठियाँय।
ताना मारँय अउ चिढ़ाँय।
लागय घर हा भाँय भाँय।
रहिथँव मूँड़ी मँय नवाँय।2।

बेटी होगे हे सजोर।
किंजरत रहिथे गली खोर।
नइ मानय अब बात मोर।
कइसे राखँव बाँध छोर ।3।

बेटा हा नइ पढ़े जाय।
मोला नइ कुछु समझ आय।
घर नइ आवय बिन बलाय।
चिंता ओकर बड़ सताय।4।

बिजरावय लइका सियान।
तोर धनी हाबय महान।
करय बुता ला आन तान।
सिरिफ बघारय अपन शान।5।

आजा संगी लुबो धान।
लुवत सबो हे किसान।
का तोला नइहे धियान।
होगे हँव मँय हलाकान।6।

रचनाकार - श्री मोहन लाल वर्मा
ग्राम -अल्दा, पोस्ट - तुलसी मानपुर,
तहसील - तिल्दा, जिला -रायपुर
छत्तीसगढ़

Thursday, October 26, 2017

बरवै छंद(12-7मात्रा) - श्रीमती वसंती वर्मा


बरवै छंद(12-7मात्रा) - श्रीमती वसंती वर्मा


🌷🌷पुन्नी के चंदा🌷🌷🌷

पुन्नी के चंदा हर,बरय अँजोर ।
नाचत देखय ओला,आज चकोर।।

सोला करे सिंगार ,चंदा आय ।
जेहर देखय ओला,मन ला भाय।।

अमरित लेके चंदा,बरसे आय ।
छानी परवा दाई,खीर मढ़ाय ।।

धान ओरमे बाली,अमरित पाय ।
पुन्नी शरद म सुघ्घर, रात नहाय ।।

भुइयाँ महतारी के ,पाँव पखार ।
आगे बेटी लछमी,घरे हमार  ।।

रचनाकार - श्रीमती वसंती वर्मा
बिलासपुर, छत्तीसगढ़

कज्जल छंद - श्री दिलीप कुमार वर्मा

कज्जल छंद -  श्री दिलीप कुमार वर्मा

धरती जंगल रहे मान।
जीव जन्तु के रहे सान।
मन मरजी सब आय जाय।
बंधन ला तब कोन भाय।1।

गरवा मन सब खाय घाँस।
जीव जन्तु सब रहे पास।
मांस खवइया कर सिकार।
जीव जन्तु ला खाय मार।2।

बन मानुस तक पाय जाय।
जीव जन्तु ओ मार खाय।
पथरा के हथियार ताय।
धीरे लोहा तको पाय।3।

पत्ता ला सब ओढ़ आय।
या पेड़न के छाल पाय।
जीव जन्तु के खाल लाय।
तन बर सब कुरता बनाय।4।

धीरे धीरे धान जान।
खेती सब करथे ग मान।
बइला मन ला बाँध लान।
पालय पोसय बन किसान।5।

धीरे धीरे ग्यान आय।
तब ओ हर मनखे कहाय।
कपड़ा पहिरे अबड़ भाय।
आनी बानी रंग लाय।6।

पर जीवन के रीत ताय।
आय जहाँ ले तहाँ जाय।
कपड़ा लकता सब कटाय।
जादा कपड़ा अब न भाय।7।

जे मनखे ला देख आज।
छोड़त हाबय सबो लाज।
लुगरा ला सब टाँग दीच।
खुल्लम खुल्ला रहे बीच।8।

धोती कुरता छोड़ आय
पाजामा अब कोन भाय।
बरमूडा के संग संग।
देखय दुनिया रहे दंग।9।

फेसन के ये कहे बात।
चिरहा फटहा धरे जात।
ओ मनखे अब सभ्य होय।
जे मनखे कपड़ा ल खोय।10।

जाने अब का होय देस।
बदलत हाबय कोन भेस।
बिन कपड़ा तक सबो होय।
मरियादा ला सबो खोय।11।

फिर से बन मानुस कहाय।
पर जंगल अब कहाँ पाय।
पथरा मा सब सर खपाय।
गरमी ले तब जान जाय।12।

कहना ला अब मान जाव।
मरियादा के संग आव।
मनखे बन के मान पाव।
बंद जिनिस के बढ़े भाव।13।

रचनाकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़ 

Wednesday, October 25, 2017

आल्हा छंद--श्री चोवा राम "बादल "5

आल्हा छंद--श्री चोवा राम "बादल "

पाँच तत्व के काया हावय,सुग्घर पाँचो देव बसाव।
आतम ज्ञान जगा के संगी, रोज रोज त्यौहार मनाव ।।

साफ़ सफाई गहना गुरिया ,दया मया के बर्तन लेय ।
धनतेरस बढ़िया हो जाथे,प्रभु धनवनतरि अमरित देय ।।

तन मन दूनों रथे निरोगी,तभे मँजा चउदस मा आय ।
खान पान मा संयम जेखर, चमकत मुखड़ा वो हर पाय ।।

छै बिकार अंतस मा बइठे,गरजत नरकासुर जी ताय ।
योग ध्यान मनमोहन पूजा, एखर बिन वो मर नइ पाय ।।

संग छोंड़ आलस बैरी के, मिहनत के नित अलख जगाय ।
माँ लछमी के करबो पूजा, आसा घी के दिया जलाय ।।

करे जतन जी गौ माता के,गोबर खातू ला अपनाय ।
गोवरधन के पूजा करबो,आवव सब झन पेंड़ लगाय ।।

मँहतारी के करके सेवा , माँतर जागे खुसी मँनाय ।
भाई दूज मनाबो सुग्घर,बहिनी मन के लाज बँचाय ।।

दोहा--
राम राज छाहित रहय, अवधपुरी सब गाँव ।
जय जय जय प्रभु राम के, परत हवँव मैं पाँव ।।

रचनाकार - श्री चोवा राम "बादल "
हथबन्ध, छत्तीसगढ़

Tuesday, October 24, 2017

बरवै छंद - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर


बरवै छंद - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

गाँव शहर सँग अंतस,अँगना खोर।
सुम्मत के दीया ले,होय अँजोर।

जिनगी ला अलखाथे,परब तिहार।
दुख के अँधियारी बर,दीया बार।

शुभचिंतक ले माँगे,मदद गरीब।
शुभ संदेश बधाई,नही नसीब।

दुखिया के दुख बाँटव,नाता जोड़।
भूँख गरीबी भागे,घर ला छोड़।

ज्ञान बटाई पावन,पबरित काम।
पढ़ लिख मनखे बनथे,गुन के धाम।

पढ़े लिखे मनखे के,हे पहिचान।
घर समाज ओखर ले,पाथे मान।

साफ सफाई स्वस्थ रहे के यंत्र।
स्वच्छ रहे के आदत,होथे मंत्र।

ध्यान रहै जी निकलै,गुरतुर बोल।
करम कमाई मा झन होवै झोल।

दीया जगमग जग मा,करे प्रकाश।
हिम्मत हारे के मन,जागे आस।

रचनाकार - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर"अँजोर"
          गोरखपुर,कवर्धा

Sunday, October 22, 2017

कज्जल छंद - श्री मनीराम साहू "मितान"

कज्जल छंद - श्री मनीराम साहू "मितान"

करले संगी लहू दान।
मिलही नँगते पुन्य जान।
अबड़े होही तोर मान।
बात मान गा तैं मितान।

मन मा बइठे डर निकाल।
भरम रोग झन पोस पाल।
नइ बिगड़य गा तोर हाल।
लगय नही अउ देख भाल।

थोकन तो ले तैं बिचार।
हिरदे ला गा अपन झार।
साफ रही तन लहू धार।
परच नही तैं झट बिमार

झन बतिया गा तीन पाँच।
सच काहत हँव बात जाँच।
जाही ककरो जीव बाँच।
नइ आवय तन चिटिक आँच।

रचनाकार - श्री मनीराम साहू "मितान"