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Sunday, March 10, 2024

विश्व महिला दिवस विशेष

विश्व महिला दिवस विशेष


 नारी 


अब तो नारी मन जागव। काली देवी कस लागव। 

बन जावव लक्ष्मी बाई। झन होवय अब करलाई। 


अबला खुद ला झन जानव। बाघिन जइसे तुम मानव। 

अंतस मा साहस भर लव। धार दार नख ला कर लव। 


आँखी कोन तरेरत हे। कइसे तोला पेरत हे। 

नजर मिला लव ओखर ले। का डरना अब जो करले। 


अब सबला बन जावव जी। नाको चने चबावव जी। 

बन जावव मरदानी माँ। झाँसी वाली रानी माँ। 


बुरा करे जे सोचत हे। तोला जेमन नोचत हे।

अइसन मन थरथर काँपय। पाँच हाथ दूरी नाँपय। 


पर्दा ला तो अब टारव। रूढ़ि वाद आगी बारव। 

दुनिया ला दिखला दव जी। नवा बिहानी ला दव जी। 


नर ले काँध मिलालव जी। मान तहुँ मन पा लव जी। 

संग चलव काँधा जोरे। बैरी के आँखी फोरे। 



दुनिया महिमा ला गावायँ। नारी ला सब झन भावयँ। 

बेटी माँ बहिनी जानयँ। अर्ध अंग तोला मानयँ। 


तँय जननी ये दुनिया के। बेटा बेटी मुनिया के। 

तँय दादी काकी नानी। तँय प्यासे मन बर पानी। 


तँय हच ता सब हो जाथे। तोर बिना सब खो जाथे। 

तोर मया बाँधे सब ला। दुनिया जानय रग रग ला। 


अपन आप पहिचानव जी। कम थोरिक झन मानव जी। 

तुहरे चक्कर सब काटय। कोन बता तोला डाँटय। 


माथा मोर नवावत हँव। तोरे गुण ला गावत हँव। 

तोरे लागत हँव पइयाँ। बन जा तँय दुर्गा मइयाँ। 


बैरी बर रण चंडी बन। समे परे सिरखंडी बन। 

बन जा तँय दुर्गा काली। आँखी ला कर ले लाली। 


ममता मइ माता मोरे। बिनती हावय कर जोरे। 

कतको रूप बनाबे माँ। ममता झन बिसराबे माँ। 


तोर मया अमरित लागे। दुख पीरा सबके भागे। 

जे तोला घर पावत हे। अपन भाग सहरावत हे। 


रचनाकार दिलीप कुमार वर्मा

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*नारी* (हरिगीतिका छंद)


नारी जनम भगवान के,वरदान हावै मान लौ।

देवी बरोबर रूप हे,सब शक्ति ला पहिचान लौ।।

दाई  इही  बेटी   इही, पत्नी   इही  संसार मा।

अलगे अलग सब मानथे,जुड़थे नता ब्यौहार मा।।


नारी बिना मनखे सबो,होवय अकेला सुन सखा।

परिवार सिरजय संग मा,तब होय मेला सुन सखा।।

अँगना दुवारी  रोज के, नारी करै श्रृंगार जी।

सब ले बने करके मया, लावै सरग घर द्वार जी।।


नारी अहिल्या रेणुका,अउ राधिका सुख कारिणी।

सीता इही गीता इही,लक्ष्मी इही जग तारिणी।।

पूजा जिहाँ होथे सुनौ,भगवान के छइँहा रथे।

सम्मान नारी के करौ,सुख घर दुवारी आ जथे।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा, जिला-कबीरधाम(छ.ग.)💐